बांका

चाईनिज सामान के आगे हाथ की कला हो रही है लुप्त

अंग भारत/अमरपुर (बांका)
अमरपुर प्रखंड में जहां एक तरफ दीपावली पर्व की तैयारी जोर-शोर से चल रही है, तो वहीं दूसरी तरफ कई कुम्हार के चेहरे पर मायूसी छाई हुई हैं। चाईनीज सामान के आगे हाथ की कला पूरी तरह लुप्त होती जा रही है। कई कुम्हार मजबूरीवश अपना पुश्तैनी काम को छोड़कर मजदूरी करने पर विवश हैं। 2० वर्ष पूर्व अमरपुर प्रखंड के कई गांव में चाक पर मिट्टी के खिलौने, दीया, मूर्ति आदी बनाकर कुम्हार बाजार में बिक्री करने आते थे। कुम्हार को अपने खिलौने की अच्छी कीमतें मिल जाती थी, और उनके घरो में हर दिन दीपावली जैसा त्योहार मनता था। चहुँओर मिट्टी की सौंधी खुशबू फैली रहती थी। बदलते युग के साथ आम लोगों की सोच भी बदलती चली गई। आम लोगों के बीच चाईनीज सामान ने अपना कब्जा जमा लिया। लोगों का रूझान हाथ की कारीगरी से बने सामान की बजाय चाईनीज सामान की ओर बढ़ गई। धीरे-धीरे हाथ से बने मिट्टी का सामान, खिलौने आदी बाजार से गायब हो गए। शहर के वार्ड नंबर ०7 निवासी नंददेव पंडित ने बताया कि पूर्व में इस मोहल्ले के बीस घरो में चाक पर मिट्टी के खिलौने, बर्तन आदी बनाने का कार्य किया जाता था। कुछ वर्षो से बाजार में चाइनीज़ तथा प्लास्टिक के खिलौने आ जाने की वजह से मिट्टी से बने बर्तन व खिलौने की डिमांड खत्म हो गई, जिस कारण कई कुम्हार अपना पुश्तैनी काम छोड़कर मजदूरी करने परदेश पलायन कर गए। अब मोहल्ले में कर्मा पंडित, पप्पु पंडित, बौधी पंडित तथा शिवम पंडित ही पुश्तैनी काम को संजोकर कार्य कर रहे हैं। चाक पर मिट्टी के खिलौने व दीया तैयार कर रहे शिवम पंडित ने बताया की अब नदी, तालाब व पोखर के समीप मिट्टी मिलनी बिल्कुल बंद हो गई है, जिस कारण काफी दुर जाकर मिट्टी लानी पड़ती है। बाबजूद खिलौने व दीये का बाजार में सही कीमत नहीं मिल पाती है, जिस कारण कई गांव के कुम्हार अपना पुश्तैनी काम छोड़ रहे हैं। उन्होंने बताया की सरकार द्बारा कोई भी सहायता नहीं मिलती है। बताते चले पुर्व में पुरनचक, मादाचक, सिमरपुर, इंगलिश, पवई डीह, शाहपुर, कामदेवपुर आदी गांवों के कुम्हार बड़ी संख्या में मिट्टी के बर्तन, खिलौने, भांड़ आदी बनाते थे। आज कई गांव के कुम्हार अपना पुश्तैनी काम छोड़ कर मजदूरी कर रहे हैं।

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