सतुआनी संक्रांति के साथ खरमास हुआ समाप्त, सारे मांगलिक कार्य हुआ प्रारंभ
रजौन/बांका, अंग भारत। हिदी माह वैशाख के प्रारंभ व सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के साथ ही विशु संक्रांति अर्थात सतुआनी संक्रांति का पर्व मनाया जाता है और इसके साथ ही चैत्र माह में लगे खरमास की भी समाप्ति हो जाती है। धार्मिक मान्यताओं को मानने वाले लोग आम के फल टिकोला सेवन की भी शुरुआत इसी दिन से करते हैं। बता दें कि प्रतिवर्ष जब सूर्य मीन राशि को छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करते है, तो इसके उपलक्ष्य में सतुआनी त्योहार बड़े ही धूमधाम व श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाता है। मान्यता यह भी है कि सूर्य जब मीन राशि को त्याग कर मेष राशि में प्रवेश करते हैं तो इस पुण्य काल में सूर्य और चंद्रमा की रस्मों से अमृतधारा की वर्षा होती है, जो आरोग्यवर्धक होता है, इसलिए इस दिन लोग बासी खाना भी खाते हैं। वैसे तो विशु संक्रांति मूल रूप से किसानों का पर्व है, जो भारतीय संस्कृति से जुड़ी हुई है, हालांकि भारत में कई क्षेत्रों में इस पर्व को अलग-अलग नाम व विधि-विधान के साथ मानने की परंपरा रही है। इस दिन लोग अपने पूजा घर में मिट्टी या पीतल के घड़े में आम का पल्लव निश्चित स्थापित करते हैं। इस दिन विशेष रूप से सत्तू खाने की परंपरा है, जो समय के साथ सम्पूर्ण भारत में बिहारी खाना के रूप में प्रसिद्ध हो गया है। इस वर्ष सोमवार को सतुआनी (विशुबा) का महापर्व मनाया गया। इस पर्व को लेकर अधिकांश घरों की महिलाओं ने सुबह-सुबह नहा-धोकर आम के पल्लव (पत्ता लगे डंठल में आम के छोटे-छोटे फल) मिट्टी के घड़े में डालकर तथा अपने कुल देवी-देवताओं को जौ एवं सत्तू का भोग लगाकर विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करने के साथ-साथ अपने घर-परिवार की खुशियों की मन्नतें मांगी तथा इसके बाद घर के सभी सदस्यों ने सत्तू, आम के टिकोले, नमक, हरी मिर्च, प्याज व आचार आदि का सेवन किया, फिर रात्रि में चिकना और गुड़ के मिश्रण से बने पूड़ी, पुए पकवान आदि का सेवन कर इस पर्व का लुत्फ उठाया। वहीं, इस पर्व के अवसर पर रात्रि में प्रखंड के कई गांवों में भर्तृहरि का कार्यक्रम का भी आयोजन किए जाने की भी खबर है। बता दें कि सतुआनी पर्व के निपटते ही सारे रुके मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। हिदू धर्मावलंबियों के लिए विशु संक्रांति का काफी महत्व है। इस दिन को लोग खरमास की समाप्ति और सारे मांगलिक कार्य की शुरुआत का दिन तो मनाते ही हैं साथ ही साथ इसे पवित्र नदियों में स्नान एवं दान पुण्य करने का भी बड़ा पर्व माना जाता है। इस दिन सत्तू के सेवन की परंपरा भी यहां सदियों से कायम है। वही विशुबा पर्व को लेकर धौनी-बामदेव पंचायत अंतर्गत रजौन-पड़घड़ी सड़क मार्ग पर अवस्थित कुरुमचक गांव के समीप छोटी बसंतराय तालाब के निकट दो दिवसीय मेला भी मंगलवार 15 अप्रैल से प्रारंभ हो रहा है। विशुबा पर्व के शुभ अवसर पर छोटी बसंतराय मेला में अखंड हरिनाम संकीर्तन, भक्ति जागरण से लेकर खेल-खिलौने, महिलाओं के श्रृंगार प्रशाधन सामग्री, मिठाई आदि की दुकानों से पटा रहता है। छोटी बसंतराय मेला को लेकर यहां रजौन, बरौनी, चकसफिया, पिपराडीह, धौनी, भोजलचक, महादा, आसमानीचक, पड़घड़ी, बामदेव सहित अन्य गांव से लोग मनोरंजन करने आते हैं।