रांची

बिरसा की विरासत से प्रेरणा लेकर जल, जंगल, जमीन और संस्कृति की लड़ाई के लिए उलगुलान का आह्वान – आदिवासी संघर्ष मोर्चा

रांची,अंग भारत| आदिवासी संघर्ष मोर्चा की दो दिवसीय राष्ट्रीय परिषद की बैठक आज एसडीसी  हॉल, रांची में जारी है, जिसमें देशभर से आए आदिवासी, सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ता भाग ले रहे हैं। जल, जंगल, जमीन, खनिज संपदा, पर्यावरण, संस्कृति और पारंपरिक अधिकारों पर बढ़ते कॉरपोरेट कब्जे और सरकारों की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ यह बैठक एकजुट संघर्ष का रूप ले रही है। यह बैठक 9 जून को बिरसा मुंडा की शहादत दिवस पर आयोजित होने वाले राष्ट्रीय कन्वेंशन की प्रस्तावना है, जहां आदिवासी समाज की निर्णायक भूमिका और देशव्यापी आंदोलन की दिशा तय की जाएगी।बैठक की शुरुआत भाकपा (माले) के महासचिव कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य ने की। उन्होंने कहा– कि आज देश में आदिवासियों की जमीन की लूट एक संगठित प्रक्रिया बन गई है। सरकारें कॉरपोरेट परस्त नीतियों के तहत सीएनटी-एसपीटी जैसे कानूनी संरक्षणों को निष्प्रभावी बना रही हैं। खनिजों की लूट और वन क्षेत्रों पर अतिक्रमण को विकास के नाम पर जायज़ ठहराया जा रहा है। जो भी इस लूट के खिलाफ आवाज उठाते हैं, उन्हें दमन, गिरफ्तारी, और फर्जी मुकदमों का सामना करना पड़ता है। विचारों को बलपूर्वक खत्म करने की यह कोशिश फासीवादी है और हम इसका प्रतिरोध करेंगे। बिरसा मुंडा ने हमें सिखाया कि जहाँ दमन होगा, वहाँ से उलगुलान फूटेगा। इसी भावना से हमें आगे बढ़ना है।”कॉमरेड दीपंकर ने आगे कहा कि मोदी सरकार और संघ परिवार आदिवासियों की सांस्कृतिक अस्मिता और पहचान को मिटाने पर आमादा है। “जहां भाजपा का कब्जा है, वहां भाकपा (माले) की संघर्षधारा खड़ी होगी। हमें आदिवासी समाज के हर संघर्ष को एक साझा आंदोलन में तब्दील करना है।”बैठक में आदिवासी संघर्ष मोर्चा के प्रभारी व भाकपा (माले) केंद्रीय कमेटी सदस्य कॉमरेड क्लिफ्टन ने कहा देशभर से आए प्रतिनिधि आज अपने-अपने क्षेत्रों के अनुभव साझा कर रहे हैं। सभी जगहों पर एक ही पैटर्न है – संसाधनों की लूट, संस्कृति पर हमला, और आदिवासियों की आवाज को कुचलना। लेकिन अब यह संघर्ष टुकड़ों में नहीं, एक राष्ट्रीय मोर्चे के तहत लड़ा जाएगा। आदिवासी संघर्ष मोर्चा इस नई लड़ाई का नेतृत्व करेगा।”सिकटा के विधायक वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता ने कहा यह सिर्फ जमीन की नहीं, अस्मिता, इतिहास और भविष्य की लड़ाई है। मोदी सरकार आदिवासियों को उनकी जड़ों से उखाड़ना चाहती है। लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे। बिरसा की प्रेरणा से यह आंदोलन अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। 9 जून को इस ऐतिहासिक कन्वेंशन से देश को नया संदेश जाएगा।”उड़ीसा से आए त्रिपति गमांगो ने कहा ओडिशा में भी आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने की सरकारी प्रक्रिया तेज हो गई है। पारंपरिक अधिकारों को नजरअंदाज किया जा रहा है और विरोध करने वालों पर दमन बढ़ रहा है।”असम की आदिवासी नेत्री प्रतिमा एपीजी ने कहा कि भाजपा की बुलडोजर राजनीति आदिवासियों को डराने, धमकाने और कुचलने का काम कर रही है। पारंपरिक अधिकारों और सांस्कृतिक विरासत को नष्ट किया जा रहा है। लेकिन देश के कोने-कोने से उठ रही आवाज़ें अब एकजुट हो रही हैं 9  को सुबह 11 बजे से एसडीसी हॉल में राष्ट्रीय कन्वेंशन का आयोजन होगा। कार्यक्रम की शुरुआत भाकपा (माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, झारखंड की चर्चित नेत्री दामिनी बरला, प्रतिमा इंपीजी त्रिपति गमांगो, क्लिफ्टन जेम्स हार्नेस,और देशभर से आए अन्य संघर्षशील प्रतिनिधियों के संबोधन से होगी। कन्वेंशन से पहले बिरसा मुंडा की समाधि पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाए।यह कन्वेंशन सिर्फ एक श्रद्धांजलि नहीं बल्कि जल-जंगल-जमीन की लड़ाई के लिए एक संगठित उलगुलान की घोषणा होगी। कार्यक्रम के माध्यम से देश को यह स्पष्ट संदेश दिया जाएगा कि जहाँ भी भाजपा और कॉरपोरेट लूट का राज होगा, वहाँ भाकपा (माले) और आदिवासी संघर्ष मोर्चा निर्णायक लड़ाई के लिए डटकर खड़े होंगे।

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