नई दिल्ली

देश का पहला एंटी सबमरीन वारफेयर ‘अर्णाला’ भारत के समुद्री बेड़े में शामिल

नई दिल्ली, अंग भारत। देश का पहला एंटी-सबमरीन वारफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट ‘अर्णाला’ बुधवार को भारत के समुद्री बेड़े में शामिल हो गया। महाराष्ट्र के वसई के ऐतिहासिक ‘अर्णाला’ किले के नाम पर बना यह युद्धपोत भारत की समृद्ध समुद्री विरासत को दर्शाता है। यह पोत भारत की नौसैनिक क्षमताओं में बड़ा बदलाव लाने के साथ ही तटीय सुरक्षा को मजबूत करेगा। रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हिंद महासागर क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर समुद्री शक्ति के रूप में उभरेगा।विशाखापट्टनम के नौसेना डॉकयार्ड में आज चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान की अध्यक्षता में कमीशनिंग समारोह में जहाज को नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया। स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित 16 पनडुब्बी रोधी युद्धक उथले जल पोत (एंटी-सबमरीन वारफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट) में से यह पहला पोत है। इस युद्धपोत में 80 फीसदी से अधिक स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल किया गया है। इसमें भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल), एलएंडटी, महिंद्रा डिफेंस और एमईआईएल सहित प्रमुख भारतीय रक्षा फर्मों की उन्नत प्रणालियां शामिल हैं। इस परियोजना में 55 से अधिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) ने सहयोग दिया है।युद्धपोत निगरानी टीमों की देखरेख में निर्मित ‘अर्णाला’ को 08 मई को भारतीय नौसेना को सौंपा गया था। विभिन्न खतरों के खिलाफ मजबूती से खड़े रहे ‘अर्णाला’ किले की तरह इस जहाज को समुद्र में मजबूत उपस्थिति के लिए डिजाइन किया गया है। इसका मजबूत निर्माण और उन्नत क्षमताएं सुनिश्चित करती हैं कि यह जहाज समुद्री क्षेत्र की चुनौतियों का सामना करके उभरते खतरों से भारत के जल की रक्षा कर सकता है। नौसेना के अनुसार ‘अर्णाला’ जहाज को पानी के नीचे निगरानी रखने, तलाश और बचाव कार्यों और कम तीव्रता वाले समुद्री संचालन (एलआईएमओ) के लिए तैयार किया गया है।यह जहाज तटीय जल में एंटी-सबमरीन वारफेयर संचालन में सक्षम है। साथ ही यह माइन बिछाने की उन्नत क्षमता से युक्‍त है। एंटी-सबमरीन वारफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट पोत के शामिल होने से भारतीय नौसेना की उथले पानी की पनडुब्बी रोधी युद्धक क्षमता में बढ़ोतरी होगी। यह भारतीय नौसेना का 1490 टन से अधिक सकल भार वाला 77 मीटर लंबा डीजल इंजन-वाटर जेट से संचालित होने वाला सबसे बड़ा युद्धपोत है। जहाज का बख्तरबंद पतवार किले की स्थायी पत्थर की दीवारों को दर्शाता है, जबकि इसके अत्याधुनिक हथियार और सेंसर उन तोपों की जगह लेते हैं, जो कभी आक्रमणकारियों से बचाव करते थे।गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (जीआरएसई) और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) में निर्मित ये जहाज पुराने हो चुके अभय श्रेणी के कोरवेट की जगह लेंगे। 80 फीसदी से अधिक स्वदेशी सामग्री के साथ ये जहाज जहाज निर्माण और रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता को दर्शाते हैं। जहाज के शिखर के नीचे एक रिबन खूबसूरती से फहराया गया है, जिस पर गर्व से जहाज का आदर्श वाक्य ‘अर्णवे शौर्यम्’ (अर्नावे शौर्यम्) प्रदर्शित किया गया है, जिसका अर्थ है ‘महासागर में वीरता’। यह शिलालेख जहाज के अटूट साहस, दुर्जेय शक्ति और विशाल समुद्र पर प्रभुत्व को दर्शाता है।स्वदेशी जहाज निर्माण न केवल घरेलू रक्षा उद्योग को मजबूत करता है, बल्कि विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता को भी कम करता है। तटीय और उथले पानी वाले क्षेत्रों में इन जहाजों की प्राथमिक भूमिका दुश्मन की पनडुब्बियों का पता लगाना और उन्हें ट्रैक करना है। पानी के नीचे के खतरों को बेअसर करने के लिए इनमें हल्के टॉरपीडो, एएसडब्ल्यू रॉकेट, एंटी-टॉरपीडो डिकॉय और उन्नत माइन-लेइंग क्षमताओं सहित अत्याधुनिक हथियार सूट की सुविधा है। ये जहाज भारत के विशाल समुद्र तट और महत्वपूर्ण अपतटीय संपत्तियों को पनडुब्बी खतरों से निरंतर और प्रभावी सुरक्षा प्रदान करेंगे, जिससे भारतीय नौसेना को हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ते भूमिगत खतरे का मुकाबला करने में मदद मिलेगी।

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